14 जनवरी, 2010

तराना

दरबारे वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जायेंगे
कुछ अपनी सजा को पहुंचेंगे, कुछ अपनी जजा ले जायेंगे.

ऐ जुल्‍म के मारो, लब खोलो, चुप रहने वालों चुप कब तक
कुछ हश्र तो इनसे उट्ठेगा, कुछ दूर तो नाले जायेंगे.

ऐ खाकनशीनो, उठ बैठो, यह वक्‍त करीब आ पहुंचा है
जब तख्‍त गिराये जायेंगे, जब ताज उछाले जायेंगे.

अब टूट गिरेंगीं जंजीरें, जब जिन्‍दानों की खैर नहीं,
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं, तिनकों से न टाले जायेंगे.

कटते भी चलो, बढते भी चलो, बाजू भी बहुत हैं सर भी बहुत
चलते ही चलो, कि अब डेरे मंजिल पे ही डाले जायेंगे.

फैज अहमद 'फैज'

1 टिप्पणी:

Ashok Kumar pandey ने कहा…

उम्मीद है यहाँ एक उपयोगी संकलन तैयार होगा…एक जनगीत यहाँ भी देखिये … http://asuvidha.blogspot.com/2009/02/blog-post.html

एक टिप्पणी भेजें