19 जनवरी, 2010

आ गए यहां जवां कदम

आ गए यहां जवां कदम जिन्‍दगी को ढूंढते हुए
गीत गा रहे हैं आज हम रागिनी को ढूंढते हुए.

अब दिलों में ये उमंग है, ये जहां नया बसायेंगे
जिन्‍दगी का दौर आज से दोस्‍तों को हम सिखायेंगे
फूल हम नए खिलायेंगे ताजगी को ढूंढते हुए

कोढ की तरह दहेज है आज देश के समाज में
है तबाह आज आदमी लूट पर टिके समाज में
हम समाज भी बनायेंगे आदमी को ढूंढते हुए
.
फिर न रो सके कोई दुल्‍हन जोर जुल्‍म का न हो निशां
मुस्‍करा उठे धरा गगन हम रचेंगे ऐसी दास्‍तां
यूं सजाएंगे वतन को हम हर खुशी को ढूंढते हुए
गीत गा रहे हैं आज हम जिंदगी को ढूंढते हुए.

-भुवनेश्‍वर

1 टिप्पणी:

PUKHRAJ JANGID पुखराज जाँगिड ने कहा…

जीवन को जीने का मकसद खोजता हुआ यह गाना किसी भी व्‍यक्ति के लिए प्रेरणास्रोत बन सकता है. किसी के लिए संजीवनी भी बन सकता है बशर्ते कि वो इसके मर्म को पहचान सके. समाज में स्‍त्री की समस्‍याओं को खोजता और उसके लिए समाज के उन कारकों को चिन्हित कर उसको हटाने के लिए हमें प्रतिबद्ध करता है. बहुत-बहुत धन्‍यवाद.

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