14 फ़रवरी, 2010

अब मैं विदा लेता हूं - पाश

अब विदा लेता हूं
मेरी दोस्त, मैं अब विदा लेता हूं
मैंने एक कविता लिखनी चाही थी
सारी उम्र जिसे तुम पढ़ती रह सकतीं

उस कविता में
महकते हुए धनिए का जिक्र होना था
ईख की सरसराहट का जिक्र होना था
उस कविता में वृक्षों से टपकती ओस
और बाल्टी में दुहे दूध पर गाती झाग का जिक्र होना था
और जो भी कुछ
मैंने तुम्हारे जिस्म में देखा
उस सब कुछ का जिक्र होना था

उस कविता में मेरे हाथों की सख्ती को मुस्कुराना था
मेरी जांघों की मछलियों ने तैरना था
और मेरी छाती के बालों की नरम शॉल में से
स्निग्धता की लपटें उठनी थीं
उस कविता में
तेरे लिए
मेरे लिए
और जिन्दगी के सभी रिश्तों के लिए बहुत कुछ होना था मेरी दोस्त

लेकिन बहुत ही बेस्वाद है
दुनिया के इस उलझे हुए नक्शे से निपटना
और यदि मैं लिख भी लेता
शगुनों से भरी वह कविता
तो उसे वैसे ही दम तोड़ देना था
तुम्हें और मुझे छाती पर बिलखते छोड़कर
मेरी दोस्त, कविता बहुत ही निसत्व हो गई है
जबकि हथियारों के नाखून बुरी तरह बढ़ आए हैं
और अब हर तरह की कविता से पहले
हथियारों के खिलाफ युद्ध करना ज़रूरी हो गया है

युद्ध में
हर चीज़ को बहुत आसानी से समझ लिया जाता है
अपना या दुश्मन का नाम लिखने की तरह
और इस स्थिति में
मेरी तरफ चुंबन के लिए बढ़े होंटों की गोलाई को
धरती के आकार की उपमा देना
या तेरी कमर के लहरने की
समुद्र के सांस लेने से तुलना करना
बड़ा मज़ाक-सा लगता था
सो मैंने ऐसा कुछ नहीं किया
तुम्हें
मेरे आंगन में मेरा बच्चा खिला सकने की तुम्हारी ख्वाहिश को
और युद्ध के समूचेपन को
एक ही कतार में खड़ा करना मेरे लिए संभव नहीं हुआ
और अब मैं विदा लेता हूं

मेरी दोस्त, हम याद रखेंगे
कि दिन में लोहार की भट्टी की तरह तपने वाले
अपने गांव के टीले
रात को फूलों की तरह महक उठते हैं
और चांदनी में पगे हुई ईख के सूखे पत्तों के ढेरों पर लेट कर
स्वर्ग को गाली देना, बहुत संगीतमय होता है
हां, यह हमें याद रखना होगा क्योंकि
जब दिल की जेबों में कुछ नहीं होता
याद करना बहुत ही अच्छा लगता है

मैं इस विदाई के पल शुक्रिया करना चाहता हूं
उन सभी हसीन चीज़ों का
जो हमारे मिलन पर तंबू की तरह तनती रहीं
और उन आम जगहों का
जो हमारे मिलने से हसीन हो गई
मैं शुक्रिया करता हूं
अपने सिर पर ठहर जाने वाली
तेरी तरह हल्की और गीतों भरी हवा का
जो मेरा दिल लगाए रखती थी तेरे इंतज़ार में
रास्ते पर उगी हुई रेशमी घास का
जो तुम्हारी लरजती चाल के सामने हमेशा बिछ जाता था
टींडों से उतरी कपास का
जिसने कभी भी कोई उज़्र न किया
और हमेशा मुस्कराकर हमारे लिए सेज बन गई
गन्नों पर तैनात पिदि्दयों का
जिन्होंने आने-जाने वालों की भनक रखी
जवान हुए गेंहू की बालियों का
जो हम बैठे हुए न सही, लेटे हुए तो ढंकती रही
मैं शुक्रगुजार हूं, सरसों के नन्हें फूलों का
जिन्होंने कई बार मुझे अवसर दिया
तेरे केशों से पराग केसर झाड़ने का
मैं आदमी हूं, बहुत कुछ छोटा-छोटा जोड़कर बना हूं
और उन सभी चीज़ों के लिए
जिन्होंने मुझे बिखर जाने से बचाए रखा
मेरे पास शुक्राना है
मैं शुक्रिया करना चाहता हूं

प्यार करना बहुत ही सहज है
जैसे कि जुल्म को झेलते हुए खुद को लड़ाई के लिए तैयार करना
या जैसे गुप्तवास में लगी गोली से
किसी गुफा में पड़े रहकर
जख्म के भरने के दिन की कोई कल्पना करे

प्यार करना
और लड़ सकना
जीने पर ईमान ले आना मेरी दोस्त, यही होता है
धूप की तरह धरती पर खिल जाना
और फिर आलिंगन में सिमट जाना
बारूद की तरह भड़क उठना
और चारों दिशाओं में गूंज जाना -
जीने का यही सलीका होता है
प्यार करना और जीना उन्हे कभी नहीं आएगा
जिन्हें जिन्दगी ने बनिए बना दिया

जिस्म का रिश्ता समझ सकना,
खुशी और नफरत में कभी भी लकीर न खींचना,
जिन्दगी के फैले हुए आकार पर फि़दा होना,
सहम को चीरकर मिलना और विदा होना,
बड़ी शूरवीरता का काम होता है मेरी दोस्त,
मैं अब विदा लेता हूं

तुम भूल जाना
मैंने तुम्हें किस तरह पलकों के भीतर पालकर जवान किया
मेरी नज़रों ने क्या कुछ नहीं किया
तेरे नक्शों की धार बांधने में
कि मेरे चुंबनों ने कितना खूबसूरत बना दिया तुम्हारा चेहरा
कि मेरे आलिंगनों ने
तुम्हारा मोम-जैसा शरीर कैसे सांचें में ढाला

तुम यह सभी कुछ भूल जाना मेरी दोस्त
सिवाय इसके,
कि मुझे जीने की बहुत लालसा थी
कि मैं गले तक जिन्दगी में डूबना चाहता था
मेरे हिस्से का जी लेना, मेरी दोस्त
मेरे भी हिस्से का जी लेना !


अनुवाद- चमनलाल

(अवतार सिंह `संधू´ पाश आठवें-नवें दशक की पंजाबी कविता के सर्वाधिक महत्वपूर्ण कवि हैं। उन्हें हिंदी में भी वही स्थान और प्यार प्राप्त है, जो पंजाबी में। सैंतीस जैसी कम उम्र में वे खालिस्तानी उग्रवादियों के शिकार हो गए, जब उनके गांव में ही उनके अभिन्न मित्र हंसराज के साथ उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया गया।)

2 टिप्‍पणियां:

PUKHRAJ JANGID पुखराज जाँगिड ने कहा…

कविता क्यूँ पढ़ी जाये??? कविता में क्या पढ़ा जाना चहिये??? कविता की विषय-वस्तु समकालीन जीवन से किस तरह गुम्फित होनी चाहिए??? अगर यह सब जानना हैं तो पाश से बढ़कर कोई नहीं हो सकता... सच कहूँ तो... अगर जीवन-संघर्ष को और उससे पनपे जीवन-रस को कविताओं मैं पाना हो तो मुझे लगता हैं पाश की कविताओं से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता. अपनी अल्पायु मैं ही उन्होंने जीवन-सोंदर्य को जिस तरह अपनी कविताओं मैं पीरिय हैं वह बेमिशाल हैं...और ''अब मैं विदा लेता हूँ'' पाश की प्रतिनिधि कविता हैं... जीसी लिखने का करण वह कुछ इस अंदाज मैं बयां करते हैं... ''...मैंने एक कविता लिखनी चाही थी/सारी उम्र जिसे तुम पढ़ती रह सकतीं...'' और सारी उम्र जिसे पढ़ा जा सके वह कविता साधारण तो हो ही नहीं सकती. यह कविता इन्द्रिय-बोध कियो सबसे सशक्त कवि हैं-इसमें आपको 'महकते हुए धनिए का जिक्र' मिलेगा तो 'ईख की सरसराहट' भी मिलेगी, तो फिर 'वृक्षों से टपकती ओस/और बाल्टी में दुहे दूध पर गाती झाग का जिक्र' न हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता... पाश स्त्री देह को स्त्री-पुरुष सामंत के बरक्स रखये हुए, उस समानतापूर्ण रिश्ते में, उसके भीतरी निहितार्थो मैं समझने की/खोजने की कोशिश करते हैं, क्यूंकि वह उनके लिए प्रेरणा का अदम्य स्रोत रहा हैं... संभवतः इसीलिए वह कहते हैं कि- 'और जो भी कुछ/मैंने तुम्हारे जिस्म में देखा/उस सब कुछ का जिक्र होना था...उस कविता में/तेरे लिए/मेरे लिए/और जिन्दगी के सभी रिश्तों के लिए बहुत कुछ होना था मेरी दोस्त...' पाश समकाली जीवन के यथाथ कि आगजनी में कवि के सोंदर्य कि तलाश कर्ते४ अहिं और कई बार वो निराश भी होते हैं लेकिन अंतत: उनके लिए वह कविता ही हैं जो उनके लिए हर राह की तलाश में दूर तक उनकी रहबर बनकर राह दिखाती हैं...साथ हीवो जानते हैं की यह सब इतना आसन नहीं हैं, इसीलिए कविता के संदर्भ में वो कहते हैं की...''मेरी दोस्त, कविता बहुत ही निसत्व हो गई है/जबकि हथियारों के नाखून बुरी/तरह बढ़ आए हैं/और अब हर तरह की कविता से पहले/हथियारों के खिलाफ युद्ध करना ज़रूरी हो गया है/युद्ध में/हर चीज़ को बहुत आसानी से समझ लिया जाता है/अपना या दुश्मन का नाम लिखने की तरह...' वो कविता की उन तमाम जीवन के यथार्थ से अलगाती रीतिवादी/कलावादी काव्य-परम्परों से खुद को अलगाते हैं और कहते हैं- '...और इस स्थिति में/मेरी तरफ चुंबन के लिए बढ़े होंटों की गोलाई को/धरती के आकार की उपमा देना/या तेरी कमर के लहरने की/समुद्र के सांस लेने से तुलना करना/बड़ा मज़ाक-सा लगता था/सो मैंने ऐसा कुछ नहीं किया...' फ़िलहाल इतना ही शेष अगली बार

अफ़लातून ने कहा…

बहुत खूबसूरत ।

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